संभल में आपको आज भी मुगलों की बनाई हुई इमारतें देखने को मिल जायेंगी। संभल एक छोटा सा शहर है लेकिन पर्यटक स्थलों का उचित हिस्सा हैं। इनमें से कुछ स्मारक समय के रूप में पुराने हैं और कई शताब्दियों के लिए समय के परीक्षण को कुशलतापूर्वक सामना करते हुए भी रहे हैं। पहली बार बाबरी मस्जिद का निर्माण सम्भल शहर में लंबा है, जिससे यह सच साबित हुआ कि मुगलों के इस छोटे से शहर को आकार देने पर स्थायी असर पड़ा। सम्भल में प्रसिद्ध कल्कि विष्णु मंदिर भी हैं आइए इन पर्यटक स्थलों को विस्तार से देखें।
संभल के कुछ पर्यटन स्थलों के नाम आपको यहां पर मिल जायेंगे
Address : Post Office Road, Main Market, Sambhal, Uttar Pradesh 244302
विज्ञापन बोर्ड बना पृथ्वीराज चौहान की चक्की का पाट
पृथ्वी राज चौहान के जमाने में यह नगर पहले उनकी राजधानी था बाद में उनके राजधानी दिल्ली ले जाने के बाद यह उनके राज्य का आउट- पोस्ट बन गया . उस ज़माने में आल्हा उदल यहाँ के प्रमुख रक्षक थे, कहते हैं कि उदल ने एक ही छलांग में एक दीवार पर चक्की का एक पाट टांग दिया था. आल्हा और उदल के बारे में आज की पीढ़ी भले ही परिचित न हो लेकिन इनके शौर्य की गाथा आज भी हिंदी भाषी इलाकों के ग्रामीण क्षेत्रों में गाई जाती हैं।
भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बहुश्रुत संयोगिता हरण और विवाह से जुड़ा चक्की के पाट का वजूद खतरे में है। शहर के मुख्य बाजार में डाकखाना रोड पर टंगा ‘चक्की का पाट’ संभल की ऐतिहासिक धरोहर है।
उपेक्षा का आलम यह है कि चक्की का पाट कंपनियों के विज्ञापन बोर्ड के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। अगर उपेक्षा जारी रही तो पृथ्वीराज चौहान की यह निशानी हकीकत की धरती से मिटकर सिर्फ स्मृतियों में कैद होकर रह जाएगी।
सियासी तौर पर वीआईपी शहर होने के साथ-साथ संभल की धरती कई ऐतिहासिक धरोहरों की साक्षी है। विडंबना यह है कि इनकी ऐतिहासिकता और महत्व से यहीं के लोग बेखबर हैं। शासन-प्रशासन की बात तो दूर की है। पृथ्वी राज चौहान की चक्की के पाट को ही ले लीजिए एक हजार साल से पुरानी इस धरोहर का अस्तित्व संकट में है।
आए थे आल्हा-ऊदल और मलखानः ‘संभल महात्म्य’ पुस्तक के अनुसार करीब एक हजार वर्ष पूर्व राजा पृथ्वीराज चौहान कन्नौज नरेश जयचंद की पुत्री संयोगिता का हरण करके लाए थे। उसी समय जयचंद की सेना के वीर योद्धा आल्हा, ऊदल और मलखान सिंह अपना वेष बदलकर नट की वेषभूषा में संयोगिता का पता लगाने संभल आए थे।
डाकखाना रोड पर कोटपूर्वी मुहल्ले में आज जहां चक्की पाट है, वहां एक किला था, जिसमें एक खिड़की थी, नट की वेषभूषा वाले आल्हा ने खिड़की से झांकने के लिए कला का प्रदर्शन करते हुए पहले वहां एक छलांग लगाकर कील ठोंकी और फिर वहां चक्की का पाट टांगा। उस समय इसकी ऊंचाई साठ फुट थी।
मुख्य उद्देश्य खिड़की से यह देखना था कि संयोगिता किले में है या नहीं। बताते हैं कि संयोगिता का पता चल गया, जिसके लिए बाद में पृथ्वीराज चौहान से युद्ध हुआ। इसी समय यह शाही एलान किया गया कि अब कोई नट संभल में कला का प्रदर्शन नहीं करेगा यदि करेगा तो उसे पहले एक ही छलांग में इस चक्की के पाट को उतारना होगा। परंपरानुसार आज भी कोई नट संभल में अपनी कला का प्रदर्शन नहीं करता।
Address : Kamalpur Sarai, Sambhal, Uttar Pradesh 244302
14 फरवरी यानि वेलेंटाइन डे को पूरी दुनिया में मोहब्बत हवा में तैरेगी। ऐसे में हमें काफी किस्से भी सुनाई देते हैं, जैसे लैला-मजनू, शीरी-फरहाद और रोमिया-जूलियट के। ऐसी ही एक प्रेम कहानी तोता-मैना की भी है। हालांकि, इनकी कहानी इतनी सहस्यमय है कि कुछ बता पाना मुश्किल है। बस दोनों की कब्र ही इनके प्रेम को बयां करती है।
संभल में है तोता-मैना की कब्र
तोता-मैना की यह कब्र उत्तर प्रदेश के संभल जिले में मौजूद है। इनकी कहानी आज तक कोई भी सही तरीके सें बयां नहीं कर पाया है। इतना ही नहीं इस पर लिखी भाषा भी आज तक कोई नहीं पढ़ पाया है। हालांकि अलग-अलग लोगों के पास अलग-अलग जानकारियां और किस्से जरूर हैं।
एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है इतिहास
नोएडा के सेक्टर-63 में रहने वाले इतिहासकार फुरकान के अनुसार, तोता-मैना की मजार का इतिहास एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। उनका कहना है कि पृथ्वीराज चौहान जंगल में तोता-मैना की प्रेम कहानी से काफी प्रभावित हुए थे। वह इस जंगल में तोता-मैना के जोड़े को देखकर बहुत खुश होते थे और वे अक्सर उन्हें देखने आते थे। जब ये तोता-मैना नहीं रहे तो राजा ने उनकी याद में यह मजार बनवा दी।
आज तक नहीं पढ़ पाया कोई भाषा
फुरकान का कहना है कि राजा ने उनके किस्से भी इस कब्र के ऊपर दर्ज करवा दिए, लेकिन इसके ऊपर क्या लिखा है, यह आज तक कोई पढ़ नहीं पाया है। हिंदी, उर्दू, अरबी और न जाने किन-किन भाषाओं के लोगों ने इसे पढ़ने समझने की कोशिश की, लेकिन कोई इस भाषा को नहीं समझ सका।
घोषित कर दी गई ऐतिहासिक
स्थानीय लोगों ने बताया कि एक बार इसे खोदने की भी कोशिश हुई, लेकिन काफी गहराई तक खुदाई के बाद इसे रोक दिया गया। उसके बाद पुरातत्व विभाग ने इसका सर्वेक्षण कर इसे अपने कब्जे में लिया और इसे एेतिहासिक घोषित कर दिया। 21वीं सदी में भी तोता-मैना के किस्से जिंदा हैं। कहा यह भी जाता है कि तोता और मैना घोड़े पर एक साथ सवारी करते थे और जिधर से निकलते थे, हर कोई इन्हें देखता रह जाता था। उनके प्यार का हर कोई दीवाना था।
Address : Village Shafi Muhammad awan district ghotki sindh pakistan, Jama Masjid Rd, Kot, Sambhal, Uttar Pradesh 244302
संभल की शाही जामा मस्जिद का इतिहास
मध्यकाल में सम्भल का सामरिक महत्त्व बढ़ गया, क्योंकि यह आगरा व दिल्ली के निकट है। सम्भल की जागीर बाबर के आक्रमण के समय अफ़गान सरदारों के हाथ में थी। बाबर ने हुमायूँ को संभल की जागीर दी लेकिन वहाँ वह बीमार हो गया, अतः आगरा लाया गया। इस प्रकार बाबर के बाद हुमायूँ ने साम्राज्य को भाइयों में बाँट दिया और सम्भल अस्करी को मिला। शेरशाह सूरी ने हुमायूँ सूरी को खदेड़ दिया और अपने दामाद मुबारिज़ ख़ाँ को सम्भल की जागीर दी।
जामा मस्जिद, जिसे बाबरी मस्जिद भी कहा जाता है, संभल के सबसे पुराने स्मारकों में से एक है। यह संभल का एक विरासत स्थल, यह मस्जिद 1528 में सम्राट बाबर के आदेश के तहत मीर बेग द्वारा बनाई गई थी। जो बात इसे और भी ऐतिहासिक बनाती है, वह यह है कि बाबर ने स्वयं इस मस्जिद का पहला पत्थर बनवाया था, इस प्रकार, यह एक ऐसा स्थान बन गया, जो इतिहास में समा गया है। यह मस्जिद शांति की भावना का अनुभव करती है और वास्तुकला की विशिष्ट मुगल शैली व इतिहास की याद दिलाती है। मस्जिद अच्छी तरह से बनाए रखी गई है और संभल में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
Address : NEAR, Manokamna Mandir Marg, Kot, Sambhal, Uttar Pradesh 244302
उड़ीसा का संभलपुर नहीं, यूपी का संभल ही है कल्कि की अवतार स्थली
श्री कल्कि महापुराण हो या फिर श्रीमद भागवत महापुराण, भविष्य पुराण अथवा स्कंद महापुराण हो, कलियुग में भगवान श्रीहरि विष्णु के दशम और अंतिम अवतार श्रीकल्कि के संभल में होने का जिक्र मिलता है। लेकिन धर्म जगत में देश के विद्वानों में संभल को लेकर भ्रम की स्थिति, अभी भी बरकरार है कि आखिर, वह कौन से संभल है, जिसमें भगवान आएंगे। यूपी के संभल में या फिर उड़ीसा के संभलपुर में।
इस धुंध को साफ करने की कवायद एक बार फिर कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने शुरू की है। जिसके तहत वह उड़ीसा के संभलपुर में पहुंचे। वहां के मां संभलेश्वरी देवी मंदिर के दर्शन के साथ साथ वहां पुजारियों से वार्ता की। लेकिन संभल की जो निशानियां पुराणों में वर्णित हैं, संभलपुर में नहीं बल्कि यूपी के संभल में ही मौजूद। जैसे 68 तीर्थ, 19 कूप, मध्य में शिवलिंग, कदंब का पेड़, दक्षिण में गंगा का बहना आदि।
इसमें कोई दो राय नहीं कि धर्म ग्रंथों में कलियुग में भगवान श्रीहरि विष्णु का दसवां अवतार कल्कि के रूप में प्रस्तावित है, जिसके संभल में ब्राह्मण परिवार में होना बताया गया है। इसका जिक्र तो सिखों के दसवें गुरु श्री गुरुगोविंद सिंह महाराज ने भी दशम ग्रंथ में किया है। लेकिन वह कौन सा संभल है, जिसमें भगवान का अवतार होगा, इसे लेकर देश के विद्वानों में सदियों से मतभिन्नता देखी जा रही है। एक संभलपुर उड़ीसा में भी है, यहां भी मां संभलेश्वरी देवी का मंदिर है, यहां भी ईश्वर के अवतार लेने की प्रार्थना की जाती है, कल्कि धाम बना हुआ है।
एक संभल यूपी में है, जहां कल्कि पीठ स्थापित है। इसी संभल में ईश्वरीय अवधारणा को प्रमाणित करने के लिए यहां हर साल श्री कल्कि महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें देश के प्रमुख संतों, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक हस्तियां पहुंचती हैं।
काफी पहले इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने भी इस धुंध को साफ करने के लिए काफी प्रयास किए लेकिन आखिरकार उन्होंने भी उत्तर प्रदेश के संभल को ही मान्यता दी, यही कारण है कि उन्होंने संभल में कल्कि विष्णु मंदिर बनवाया। देश के शंकराचार्यों, धर्माचार्यों, साधु संतों ने दशकों पहले संभल को कल्कि पीठ घोषित किया। कल्कि पीठ संभल के ऐंचोड़ा कंबोह में स्थित है।
आचार्य प्रमोद कृष्णम को कल्कि पीठाधीश्वर घोषित किया गया। भारत के प्रमुख संत डोगरे महाराज, स्वामी करपात्री महाराज के पश्चात अवतारी संभल पर छाई धुंध को धर्मजगत में साफ करने के लिए एक बार फिर श्रीकल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कवायद शुरू की और उड़ीसा के संभलपुर जा पहुंचे। पिछले सप्ताह उन्होंने संभलपुर में मां संभलेश्वरी देवी मंदिर के दर्शन के साथ साथ वहां के श्रीमहंत डा. सुरेंद्र महापात्रा व अन्य पुजारियों के साथ बातचीत की, उन्होंने भी अपने दावे किए, जो पुस्तकें लिखी गईं, उन्हें भी दिखाया गया लेकिन महापुराणों में जिस संभल में कल्कि अवतार का जिक्र किया गया है,
उसकी कुछ पहचान/निशानियां बताई गई है, जिसमें 68 तीर्थ, 19 धर्मकूप, मध्य में शिवलिंग, कदंब का प्राचीन पेड़ व दक्षिण में गंगा का होना बताया गया है, जब इन निशानियों के बारे में पूछा गया तो संभलपुर में कल्कि अवतार का दावा फीका साबित हो गया, क्योंकि यह सभी निशानियां संभल उत्तर प्रदेश के संभल में ही मौजूद हैं। संभलपुर से लौटने के बाद आचार्य प्रमोद कृष्णम ने स्पष्ट किया कि पुराणों, धर्मग्रंथों में भगवान कल्कि के अवतार के लिए जिस संभल को नामित किया गया है, वह उत्तर प्रदेश का संभल ही है।
-68 तीर्थ मध्य में शिवलिंग-कूप कदम न्यारे, दिशा दक्षिणी बहती गंगा, हर मंदिर प्यारे, यह निशानियां धर्मग्रंथों में बताई गई हैं, यह सारी निशानियां उत्तर प्रदेश के संभल में हैं, जो अब जिला बन चुका है, इसलिए अब संभल को निर्विवाद रूप से कल्कि अवतार भूमि माना जाना चाहिए।
Address : Kotwali, Main Market, Ghanta Ghar, Sambhal, Uttar Pradesh 244302
बिग बेन से मक्का घड़ी टावर तक, प्रदर्शित करने का विजेता और एलिजाबेथ शैली हमेशा एक बहुत ही लोकप्रिय अवधारणा रही है। ऐसा एक घड़ी टॉवर सम्भल में मौजूद है जिसे कहा जाता है कि बहुत लंबे समय से अस्तित्व में है। यह इमारत के सभी चार चेहरों पर घड़ी की मेजबानी के साथ एक लाल और सफेद इमारत है। यद्यपि इसमें बहुत से बाहरी गिरावट आई है, टावर अभी भी एक महान वास्तुशिल्प टुकड़ा है जो इस छोटे से शहर में ग्लिट्ज जोड़ता हैं।
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